पूरे देश में धूमधाम से नवरात्रि का त्योहार मनाया जा रहा है. नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. खासतौर से उत्तर भारत में भक्त मां दुर्गा की विशेष कृपा पाने के लिए इन नौ दिनों में व्रत रखते हैं. व्रत के दौरान अष्टमी यानी कि व्रत के आठवें दिन नौ कन्याओं का पूजन करने का विधान है.
अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें रूप यानी कि महागौरी का पूजन किया जाता है. सुबह महागौरी की पूजा के बाद घर में नौ कन्याओं और एक बालक को घर पर आमंत्रित किया जाता है. सभी कन्याओं और बालक की पूजा करने के बाद उन्हें हलवा, पूरी और चने का भोग दिया जाता है. इसके अलावा उन्हें भेंट और उपहार देकर विदा किया जाता है.
06 अक्टूबर 2019 को कन्या पूजन के दो शुभ मुहूर्त हैं: सुबह 09 बजकर 15 मिनट से दोपहर 12 बजकर 09 मिनट तक. शाम 05 बजकर 58 मिनट से रात 09 बजकर 04 मिनट तक
इस साल नवरात्रि में नवमी तिथि महा-अष्टमी के दिन से ही लग चुकी है। 6 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 54 मिनट पर नवमी के शुरू होने की तिथि है। जबकि 7 अक्टूबर को दोपहर 12.38 बजे पर नवमी तिथि समाप्त हो जाएगी। यानी आपको दोपहर 12.00 से पहले कन्या पूजन और हवन का कार्य संपन्न कर लेना चाहिए।
कन्या पूजन के दिन सुबह-सवेरे स्नान कर भगवान गणेश और महागौरी की पूजा करें.
कन्या पूजन के लिए दो साल से लेकर 10 साल तक की नौ कन्याओं और एक बालक को आमंत्रित करें. आपको बता दें कि बालक को बटुक भैरव के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव ने हर शक्ति पीठ में माता की सेवा के लिए बटुक भैरव को तैनात किया हुआ है. कहा जाता है कि अगर किसी शक्ति पीठ में मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन न किए जाएं तो दर्शन अधूरे माने जाते हैं.
ध्यान रहे कि कन्या पूजन से पहले घर में साफ-सफाई हो जानी चाहिए. कन्या रूपी माताओं को स्वच्छ परिवेश में ही बुलाना चाहिए.
कन्याओं को माता का रूप माना जाता है. ऐसे में उनके घर आने पर माता रानी के जयकारे लगाएं.
अब सभी कन्याओं को बैठने के लिए आसन दें.
फिर सभी कन्याओं के पैर धोएं.
अब उन्हें रोली, कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं.
इसके बाद उनके हाथ में मौली बाधें.
अब सभी कन्याओं और बालक को घी का दीपक दिखाकर उनकी आरती उतारें.
आरती के बाद सभी कन्याओं को यथाशक्ति भोग लगाएं. आमतौर पर कन्या पूजन के दिन कन्याओं को खाने के लिए पूरी, चना और हलवा दिया जाता है.
भोजन के बाद कन्याओं को यथाशक्ति भेंट और उपहार दें.
इसके बाद कन्याओं के पैर छूकर उन्हें विदा करें.