शिवरात्रि साल मे 12/13 बार आने वाला मासिक त्यौहार है। हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि आती है। इनमें से सबसे मुख्य महाशिवारात्रि को माना जाता है। इस बर्ष महाशिवरात्रि सोमवार के दिन है जिसे बड़ा ही दुर्लभ माना जाता है। सोमवार का दिन भगवान शिव से जोड कर देखा जाता है। महाशिवरात्रि और सोमवार दोनों एक दिन होना शिवभक्तों के लिए बहुत ही शुभ है। विवाह योग्य युवक - युवतियां विवाह योग के लिये शिवजी का अभिषेक करते हैं।
हिंदू पुराणों में महाशिवरात्रि के लिए कोई एक नहीं बल्कि कई वजहें बताई गई हैं। किसी कथा में महाशिवरात्रि को भगवान शिव के जन्म का दिन बताया गया है| मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी वजह से इस दिन शिवलिंग की खास पूजा की जाती है। वहीं, दूसरी प्रचलित कथा के मुताबिक ब्रह्मा ने महाशिवरात्रि के दिन ही शंकर भगवान का रुद्र रूप का अवतरण किया था। इन दोनों कथाओं से अलग कई स्थानों पर मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी।
2020 में महाशिवरात्रि 21 फरवरी को है । निशीथ काल पूजा मुहूर्त : 22 फरवरी 00:09 - 01:00 पारण मुहूर्त : 06:58 - 15:23
एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती को सबसे सरल व्रत-पूजन का उदाहरण देते हुए एक शिकारी की कथा सुनाई. इस कथा के अनुसार चित्रभानु नाम का एक शिकारी था, वो पशुओं की हत्या कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था. उस पर एक साहूकार का ऋण था, जिसे समय पर ना चुकाने की वजह से एक दिन साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया था. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिवमठ में शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना और कथा सनाई जा रही थी, जिसे वो बंदी शिकारी भी सुन रहा था. शाम होते ही वो साहूकार शिकारी के पास आया और ऋण चुकाने की बात करने लगा. इस पर शिकारी ने साहूकार से कर्ज चुकाने की बात कही.
अगले दिन शिकारी फिर शिकार पर निकला. इस बीच उसे बेल का पेड़ दिखा. रात से भूखा शिकारी बेल पत्थर तोड़ने का रास्ता बनाने लगा. इस दौरान उसे मालूम नहीं था कि पेड़ के नीचे शिवलिंग बना हुआ है जो बेल के पत्थरों से ढका हुआ था. शिकार के लिए बैठने की जगह बनाने के लिए वो टहनियां तोड़ने लगा, जो संयोगवश शिवलिंग पर जा गिरीं. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए.
इस दौरान उस पेड़ के पास से एक-एक कर तीन मृगी (हिरणी) गुज़रीं. पहली गर्भ से थी, जिसने शिकारी से कहा जैसे ही वह प्रसव करेगी खुद ही उसके समक्ष आ जाएगी. अभी मारकर वो एक नहीं बल्कि दो जानें लेगा. शिकारी मान गया. इसी तरह दूसरी मृग ने भी कहा कि वो अपने प्रिय को खोज रही है. जैसे ही उसके उसका प्रिय मिल जाएगा वो खुद ही शिकारी के पास आ जाएगी. इसी तरह तीसरी मृग भी अपने बच्चों के साथ जंगलों में आई. उसने भी शिकारी से उसे ना मारने को कहा. वो बोली कि अपने बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर वो वापस शिकारी के पास आ जाएगी.
इस तरह तीनों मृगी पर शिकारी को दया आई और उन्हें छोड़ दिया, लेकिन शिकारी को अपने बच्चों की याद आई कि वो भी उसकी प्रतिक्षा कर रहे हैं. तब उसके फैसला किया वो इस बार वो किसी पर दया नही करेगा. इस बार उसे मृग दिखा. जैसे ही शिकारी ने धनुष की प्रत्यंचा खींची मृग बोला - यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े. मैं उन मृगियों का पति हूं. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा.
ये सब सुन शिकारी ने अपना धनुष छोड़ा और पूरी कहानी मृग को सनाई. पूरे दिन से भूखा, रात की शिव कथा और शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने के बाद शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया. उसमें भगवद् शक्ति का वास हुआ. थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके. लेकिन जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई.
शिकारी ने मृग के परिवार को न मारकर अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया. देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे. इस घटना के बाद शिकारी और पूरे मृग परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई.
ॐ नमः शिवाय
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