Sakat Chauth, also known as Sankashti Chaturthi, is a significant Hindu festival dedicated to Lord Ganesha. Observed on the fourth day of the Krishna Paksha (waning phase of the moon) each month, Sakat Chauth holds a special place in the hearts of devotees. It is believed that worshiping Lord Ganesha on this day brings prosperity, removes obstacles, and grants blessings of wisdom and intelligence. Let's delve into the significance of Sakat Chauth and understand the rituals, benefits, and how to celebrate this auspicious day.
Sakat Chauth on Friday, January 17, 2025
Moonrise on Sakat Chauth Day - 09:09 PM
Chaturthi Tithi Begins - 04:06 AM on Jan 17, 2025
Chaturthi Tithi Ends - 05:30 AM on Jan 18, 2025
Sakat Chauth is particularly significant for mothers who pray for the well-being and prosperity of their children. This auspicious day is dedicated to the worship of Lord Ganesha, the remover of obstacles and the god of wisdom. According to Hindu mythology, Sakat Chauth marks the day when Lord Ganesha relieved his mother, Goddess Parvati, from distress, thus it is also seen as a day of relief from troubles and difficulties. Devotees believe that observing the fast and performing the rituals with devotion can lead to the fulfillment of wishes and removal of hardships.
सकट चौथ: भक्ति और आशीर्वाद का दिन
सकट चौथ, जिसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। हर महीने के कृष्ण पक्ष (चाँद के घटते चरण) के चौथे दिन मनाया जाने वाला सकट चौथ भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से समृद्धि, बाधाओं का निवारण और ज्ञान व बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए सकट चौथ के महत्व को समझें और इस शुभ दिन के अनुष्ठान, लाभ और कैसे मनाया जाता है।
सकट चौथ विशेष रूप से उन माताओं के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने बच्चों की भलाई और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। इस शुभ दिन को भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित किया जाता है, जो बाधाओं का निवारण करने वाले और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ उस दिन को दर्शाता है जब भगवान गणेश ने अपनी माता, देवी पार्वती, को कष्ट से मुक्त किया था। इसलिए, इसे समस्याओं और कठिनाइयों से राहत का दिन भी माना जाता है। भक्तों का मानना है कि व्रत का पालन और भक्ति के साथ अनुष्ठान करने से इच्छाओं की पूर्ति और कठिनाइयों का निवारण होता है।
एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह धर्म पुण्य को नहीं मानते थे। इसके कारण उनके कोई बच्चा नहीं था। एक दिन साहूकारनी पडोसी के घर गयी। उस दिन सकट चौथ था, वहाँ पड़ोसन सकट चौथ की पूजा करके कहानी सुना रही थी।
साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा: तुम क्या कर रही हो? तब पड़ोसन बोली कि आज चौथ का व्रत है, इसलिए कहानी सुना रही हूँ। तब साहूकारनी बोली: चौथ के व्रत करने से क्या होता है? तब पड़ोसन बोली: इसे करने से अन्न, धन, सुहाग, पुत्र सब मिलता है। तब साहूकारनी ने कहा: यदि मेरा गर्भ रह जाये तो में सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत करुँगी। श्री गणेश भगवान की कृपया से साहूकारनी के गर्भ रह गया। तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाये, तो में ढाई सेर तिलकुट करुँगी। कुछ दिन बाद उसके लड़का हो गया, तो वह बोली कि हे चौथ भगवान! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा, तो सवा पांच सेर का तिलकुट करुँगी। कुछ वर्षो बाद उसके बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने चला गया। लेकिन उस साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। इस कारण से चौथ देव क्रोधित हो गये और उन्होंने फेरो से उसके बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। सभी वर को खोजने लगे पर वो नहीं मिला, हतास होकर सारे लोग अपने-अपने घर को लौट गए। इधर जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था, वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजने के लिए जंगल में दूब लेने गयी। तभी रास्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आई: ओ मेरी अर्धब्यहि! यह बात सुनकर जब लड़की घर आयी, उसके बाद वह धीरे-धीरे सूख कर काँटा होने लगी। एक दिन लड़की की माँ ने कहा: मैं तुम्हें अच्छा खिलाती हूँ, अच्छा पहनाती हूँ, फिर भी तू सूखती जा रही है? ऐसा क्यों? तब लड़की अपनी माँ से बोली कि वह जब भी दूब लेने जंगल जाती है, तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है कि ओ मेरी अर्धब्यहि। उसने मेहँदी लगा राखी है और सेहरा भी बांध रखा है। तब उसकी माँ ने पीपल के पेड़ के पास जा कर देखा, यह तो उसका जमाई ही है। तब उसकी माँ ने जमाई से कहा: यहाँ क्यों बैठे हैं? मेरी बेटी तो अर्धब्यहि कर दी और अब क्या लोगे? साहूकारनी का बेटा बोला: मेरी माँ ने चौथ का तिलकुट बोला था लेकिन नहीं किया, इस लिए चौथ माता ने नाराज हो कर यहाँ बैठा दिया। यह सुनकर उस लड़की की माँ साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा कि तुमने सकट चौथ का कुछ बोला है क्या? तब साहूकारनी बोली: तिलकुट बोला था। उसके बाद साहूकारनी बोली मेरा बेटा घर आजाये, तो ढाई मन का तिलकुट करुँगी। इससे श्री गणेश भगवन प्रसंन हो गए और उसके बेटे को फेरों में लाकर बैठा दिया। बेटे का विवाह धूम-धाम से हो गया। जब साहूकारनी के बेटा एवं बहू घर आगए तब साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया और बोली हे चौथ देव! आप के आशीर्वाद से मेरे बेटा-बहू घर आये हैं, जिससे में हमेसा तिलकुट करके व्रत करुँगी। इसके बाद सारे नगर वासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारम्भ कर दिया। हे सकट चौथ! जिस तरह साहूकारनी को बेटे-बहू से मिलवाया, वैसे ही हम सब को मिलवाना। इस कथा को कहने सुनने वालों का भला करना। बोलो सकट चौथ की जय। श्री गणेश देव की जय।