Karva-Chauth is the most sacred fast observed by Sanatan Married women for the prosperity & age of their Husbands.
This fast starts on the Sunrise of the 4th tithi (4th Lunar day in the waning phase) of Ashwin month and ends at Moon-rise in the evening of the same day. On this auspicious occasion, women started doing preparation from the previous day itself. They decorate their hand with henna (मेहन्दी) on their hand and buy ornaments & new clothes on the previous day.
Women don’t even drink water during this fast. Women should continue this fast minimum till 12 or 16 years once started, after that, they can do closure (उद्यापन) of this fast. On this day, we should observe the prayer of Lord Shiva, Kartikey, Ganesha & Moon. For Poojan, we should make Altar (वेदी) with white sand, and summons (आह्वाहन) all the gods specified above.
Offering to God (नैवेद्य)
You should prepare and offer the Khand and Shakkar to God ( खांड और शक्कर के लड़्डु ) and prepare 13 karve ( करवे) with black sand along with shakkar chasni (काली मिट्टी में शकर की चासनी).
Karwa Chauth on Wednesday, October 20, 2024
Karva Chauth Pooja Time (पूजन समय)
Pooja Muhurat: 05:46 PM to 07:02 PM
Chaturthi Tithi Starts - 06:46 PM on Oct 20, 2024
Chaturthi Tithi Ends - 04:16 PM on Oct 21, 2024
Moonrise (चन्द्रोद्य)
07:54 PM
Pooja Vidhi (पूजन विधि)
सर्गी - ये सूर्योदय से पहले का भोजन है | इस मे सेंवई खीर , परांठे भी शामिल है और चौथ से पहले रात उनकी सासु मां जी उन्हें सौंपती है |
देव स्थापना
सफेद मिट्टी(बालू) की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। तत्प्श्चात् यथाशक्ति देवों का पूजन करें।
मन्त्र
'ॐ शिवायै नमः' (पार्वती),
'ॐ नमः शिवाय' (शिव),
'ॐ षण्मुखाय नमः' (कार्तिकेय),
'ॐ गणेशाय नमः' (गणेश) तथा
'ॐ सोमेश्वराय नमः' (चंद्रमा) का पूजन करें।
विधि
करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर दे। एक लोटा, एक वस्त्र व एक करवा दक्षिणा में अर्पित कर पूजन समापन करें। व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएँ। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।
अपनी सासूजी को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।
व्रत कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।
साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।
इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।
इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
हमे इस दिन पर श्रीसुक्तम भी पढ़ना चाहिए। मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से समृद्धि और धन मिलता है।