प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है| प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है| भगवान शिव की पूजा एवं उपवास- व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है| इस समय विधि विधान से भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 09 दिसंबर 2019 को सुबह 09 बजकर 54 मिनट से हो रहा है, जो 10 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 44 मिनट तक है। इस दिन पूजा का मुहूर्त शाम को 05 बजकर 25 मिनट से रात को 08 बजकर 08 मिनट तक है। इस मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा अर्चना विशेष फलदायी होगी।
योदशी के दिन सुबह में स्नानादि से निवृत होने के बाद सोम प्रदोष व्रत और पूजा का संकल्प लें। स्नान के बाद भगवान शिव की पूजा अर्चना करें। फिर दिनभर व्रत के नियमों का पालन करते हुए शाम को पूजा करें। बताए गए पूजा मुहूर्त में भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें।
शाम को स्नान के बाद पूजा स्थान पर उत्तर या पूर्व की दिशा में बैठें। फिर भगवान शिव की मूर्ति, तस्वीर या शिवलिंग की स्थापना करें। अब भगवान शंकर को गंगा जल, अक्षत्, पुष्प, धतूरा, धूप, फल, चंदन, गाय का दूध, भांग आदि अर्पित करें।
फिर ऊं नम: शिवाय: मंत्र का जाप करें और शिव चालीसा का पाठ करें। इसके पश्चात घी या कपूर के दीपक से भगवान शिव की आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद परिजनों में बांट दें। रात्रि के समय भगवत वंदन और भजन करें। फिर अलगे दिन सुबह स्नानादि के बाद पारण करें।
प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी।
एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी।
एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।
एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा।
राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।
अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?
राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा। वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।
उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।